नवरात्र का पावन त्योहार शुरू हो गया है। कहते हैं कि कोई भी पूजा तब तक पूरी नहीं मानी जाती है जब तक आरती न की जाए। इसलिए नवरात्र में भी श्री देवी जी की पूजा करने के बाद आरती करने का विधान है।
जगजननी जय ! जय ! माँ ! जगजननी जय ! जय !
भयहारिणि, भवतारिणि, भवभामिनि जय ! जय !! जगo
तू ही सत-चित-सुखमय शुद्ध ब्रह्मरुपा ।
सत्य सनातन सुन्दर पर-शिव सुर-भूपा ।।1।। जगo
आदि अनादि अनामय अविचल अविनाशी ।
अमल अनन्त अगोचर अज आनँदराशी ।।2।। जगo
अविकारी, अघहारी, अकल, कलाधारी ।
कर्त्ता विधि, भर्त्ता हरि, हर सँहारकारी ।।3।। जगo
तू विधिवधु, रमा, तू उमा, महामाया ।
मूल प्रकृति विद्या तू, तू जननी, जाया ।।4।। जगo
राम, कृष्ण तू, सीता, व्रजरानी राधा ।
तू वाण्छाकल्पद्रुम, हारिणि सब बाधा ।।5।। जगo
दश विद्या, नव दुर्गा, नानाशस्त्रकरा ।
अष्टमातृका, योगिनि, नव नव रूप धरा ।।6।। जगo
तू परधामनिवासिनि, महाविलासिनि तू ।
तू ही श्मशानविहारिणि, ताण्डवलासिनि तू ।।7।। जगo
सुर-मुनि-मोहिनि सौम्या तू शोभाssधारा ।
विवसन विकट-सरुपा, प्रलयमयी धारा ।।8।। जगo
तू ही स्नेह-सुधामयि, तू अति गरलमना ।
रत्नविभूषित तू ही, तू ही अस्थि-तना ।।9।। जगo
मूलाधारनिवासिनि, इह-पर-सिद्धिप्रदे ।
कालातीता काली, कमला तू वरदे ।।10।। जगo
शक्ति शक्तिधर तू ही नित्य अभेदमयी ।
भेदप्रदर्शिनि वाणी विमले ! वेदत्रयी ।।11।। जगo
हम अति दीन दुखी मा ! विपत-जाल घेरे ।
हैं कपूत अति कपटी, पर बालक तेरे ।।12।। जगo
निज स्वभाववश जननी ! दयादृष्टि कीजै ।
करुणा कर करुणामयि ! चरण-शरण दीजै ।।13।। जगo
जय अम्बे गौरी, माँ जय श्यामा गौरी ।
तुमको निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी ॥ जय अम्बे...
मांग सिन्दुर विराजत टीको मृगद को ।
उज्जवल से दोउ नैना, चन्द्रवदन नीको ॥ जय अम्बे...
कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजै ।
रक्त-पुष्प गल माल, कण्ठन पर साजै ॥ जय अम्बे...
केहरि वाहन राजत, खड्ग खपर धारी ।
सुर-नर-मुनि-जन सेवत, तिनके दुःखहारी ॥ जय अम्बे...
कानन कुण्डल शोभित, नासाग्रे मोती ।
कोटिक चन्द्र दिवाकर सम राजत ज्योति ॥ जय अम्बे...
शुम्भ निशुम्भ विदारे महिषासुर-घाती ।
धुम्रविलोचन नैना निशिदिन मतमाती ॥ जय अम्बे...
चण्ड मुण्ड संहारे शोणितबीज हरे ।
मधु कैटभ दोउ मारे सुर भयहीन करे ॥ जय अम्बे...
बह्माणी, रुदाणी तुम कमलारानी ।
आगम-निगम-बखानी, तुम शिव पटरानी ॥ जय अम्बे...
चौंसठ योगिनि गावत, नृत्व करत भैरुँ ।
बाजत ताल मृदंगा औ बातज डमरु ॥ जय अम्बे...
तुम ही जग की माता, तुम ही हो भरता ।
भक्तन कि दुख हरता सुख सम्पति करता ॥ जय अम्बे...
भुजा चार अति शोभित, वर-मुद्रा धारी ।
मनवांछित फल पावत, सेवत नर-नारी ।। जय अम्बे...
कंचन थाल विराजत, अगरू कपूर बाती ।
मालकेतु में राजत, कोटिरतन ज्योति ।। जय अम्बे...
मां अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावै ।
कहत शिवानन्द स्वामी, सुख सम्पति पावे || जय अम्बे...
माँ दुर्गे दुर्गतिनाशिनी हम अनपढ़ निपट, अनारी छि ।
कृपा भीखहित द्वारा अहाँ के, आयल एक भिखारी छि |
परम अबोध विषम पुनिपापि हम अत्यंत अधिकामी छि ।
कहब कतेक अपन अपगुण पुनि नामि बनल कुगामि छि ||
किंतु पुत्र थिकहुं अहां के केहनो अत्याचारी छि ।
माँ दुर्गे दुर्गतिनाशिनी हम अनपढ़ निपट अनारी छि ।
अहाँ सनक करूणामयी मैया कतहुँ दृष्टि नहि अबईत अछि ।
हो कुपुत्र माता न कुमाता वेद,संतगुण गबईत अछि ।
एहि आशा बल से निर्भय हम, यद्यपि दुर्व्यवहारी छि । माँ दुर्गे....
हो यदि बौक बकलेलो बेटा माता रखथिन्ह कोरे में ।
माय-बाप-बेटा कै नाता बान्हल प्रेमक डोरी में ||
कृपा करू माँ अहिक, जाल में फसल सरस संसारी छि | माँ दुर्गे....
महादिन की लडहम पूजय सब साधन सँ छि मारल ।
खाली हाथे मुक बनल माँ सकल ठाम सँ छि हारल ।
मधूकर पद पदमक परिमल कँ प्यासल एक पुजारी छि । माँ दुर्गे...
जय शिव प्रिये शंकर प्रिये, जय मंगले मंगल करू ।
जय अम्बिके जय त्रयमिके, जय चंडिके मंगल करू ।।
अनंत शक्तिशालीनी, अमोघ शस्त्र धारिणी ।
निशुम्भ शुम्भ मर्दिनी, त्रिशुल चक्र पादणि ॥
जय भद्रकाली भैरवी, जय भगवती मंगल करू ।।
कराले मुख कपालिनी, विशाल मुण्डमालिनी ।
असमी अट्टहासिनी, त्रिमुर्ति, श्रष्टि कारिणी ।।
हे ईश्वरी: पस्मेश्वरी, सर्वेश्वरी मंगल करू ।
कव्यायिनी, नारायिणी, महेश्वरी मंगल करू ।
प्रकृति अहीं सुकृति अहीं, दया अहीं प्रभा अहीं ।
श्वधा अहीं, छटा अहीं, कला अहीं प्रभा अहीं ।
दुख हारिणी सुखकारिणी, हे पार्वती मंगलकरू ।
हे ललित शक्ति प्रदायिनी, सिद्धेश्वरी मंगलकरू ।